Wednesday, July 19, 2017

गरीब कौन है ?

ग़रीब कौन है ?
जो एक रुपये में खुशियां खरीदता है?
जो फाटक पे फटे कपड़े पहन
बड़ी गाड़ियों के शीशे चमकाता है?

या ग़रीब वो है जो सफेद पावडर में बंद मौत खरीद रहा है

या वो है जो 15 अगस्त के दिन एक रुपए में झंडे बेच रहा है

मजबूरी के कपड़े फटे है
या बेशर्म अमीर अलमारी में फटी जीन्स गरीब है।
आखिर ग़रीब है कौन ?

सिग्नल पे फूलो के गुच्छों को लिए वो खुशिया बेचती है
सिनेमा घरों में उतरते है हुस्न के कपङे 
बिकते वो भी है उसूलों में

बारिश में भीगी मैली साड़ी लहराती वो औरत बड़ी गंदी लगती हैं
लाखो का मेक अप लगाके जो रेम्प पे फबती थी ?

तालिया बजती है इज्जतदारी की महफ़िल में भी,
तालिया तो चौराहे पे वो भी पिटते है 
वो महज़ दस रुपये में अपनी दुआएं बेचते है ?

अमा यार, गरीब कौन है ?

किटी पार्टियों में पैसे हारने का शौक है जिन्हें
जो बर्तन मांजकर अपना घर संभाल लेती है

कीचड़ में लतपत है जिसका बचपन 
या खिलौनों के भीड़ में जो ज़ोर ज़ोर से रोती है

ग़रीब आखिर है कौन ?

मैले कुचैले कपड़ो से गरीबी हाथ फैलाती है या
सट्टे में हज़ारों हारने वाली दोस्ती !

भूखे वो पेट गरीब है 
या हरामखोर सत्ताधीश ?

लंबी लंबी वो घंमन्डी इमारते गरीब है या 
वो ईमानदार झोपड़ी ग़रीब है ?

ग़रीब आखिर है कौन ?

(फेहरिश्त लंबी है, हर्फ़ कम)

पं . अर्चना शर्मा



Wednesday, October 1, 2014

माँ

माँ 
आज तेरी पुरानी लोरी रात भर जगाएगी
उदास पलके प्यासी अपनी ही आंसू पी जायेगी
उड़ते पंछी किसे ढूंढते हैं , क्या आज तू बता पायेगी
इस हवाओं के झोकों में तेरी मीठी हंसी कब सुनाएगी
खुद भी आएगी क्या तू माँ ?
या बस याद तेरी आएगी
कहती थी सर्द मौसम हैं आज शाल पहनकर दफ्तर जाना
भूक लगेगी तो बस घर का खाना खाना
अब क्या तू गोल परोंठे अपने हांथो से नहीं बनाएगी?
ना फोन करके पूछेगी “बिटिया तू कितनी देर में आएगी”
तेरी बाँहों में मेरी राते घुलती
तेरे कंगन के खनक से नींद खुलती
जब मैं छोटी थी तो समझती चाँद को तू माथे पे सजाती हैं
रोज़ रोज़ नयी कहानिया कहा से लाती ?
आज तेरी आवाज़ कहीं खो गयी
क्यूँ मुझसे इतने जल्दी जुदा हो गयी
क्या तू छोटी बिटिया को डोली में नहीं बिठाएगी ?
मुझे दुल्हन सा नहीं सजाएगी ?
क्यूँ विदाई के गीत नहीं गाएगी ?
बस ...अब तो याद आएगी ना माँ तू तो नहीं आएगी ?
तडपेगी तू भी बहोत लेकिन गले से नहीं लगा पाएगी ?
बचपन की वो लोरी आज तो रात भर जगाएगी
मैं नहीं जानती थी तू किसी दिन ऐसे सो जाएगी

मम्मा I <3 nbsp="" o:p="" u="">
अर्चना शर्मा 

Friday, September 12, 2014

गाँव की यादे

 पनघट तक पीछे आके,
मेरी मटकी तोडके आँखे मिलाते,
नैनों में नयना डाल मुस्कुरात ,
संखिओं को देख क्यूँ छुप जाते?
आज समझ में आया,
थक जाती थी मैं किनारे तक चल जब,
मेरे आँचल से अपना पसीना हटाते थे
कच्ची मोड़ मेरे आँगन में वोही से क्यूँ जाते,
आज समझ में आया
अकेली आना कहते,
सखियों को साथ ना लाना
मेरी कलाई थाम के घंटो क्या ढूंढा करते
आज समझ में आया
जब भी शाम को लालटेन जलाऊ
छत से क्यूँ झाँका करते
जब तक ना ओझल हो जाये
क्यूँ पगडंडी तक देखा करते?
आज समझ में आया
जाड़े की नरम धूप में तुम
छत की आड़ में क्यों ले जाया करते
आँगन की वो छाव का बिस्तर,
और सपनो का तकिया,
रस्सीवाली वो प्यार में बुनी हुई वो खटिया,
मेरे पैरो को अपने पैरो से दबाना,
मेरी पायल का शरमाना,
घूँघरू का “छनछन” मुझे चिढाना,
मेरे आँचल को तेरा सर पे ओढांना,
देखना मुझे उस चोर निगाहों से,
फिर लजाके मेरा तुमसे सिमट जाना,
अंगीठी की वो नरम आंच,
 बचपन का वो झूला
और जवानी की आँख मिचोली,
संखियो की खुसफुस सुनकर,
भागना अपनी मडईया ओर
बिन मतलब टीका सिंगार
बरसात का वो भीगा योवन
क्यूँ रखती थी मैं एक छोटा दर्पण
शायद आज समझ में आया,
जब तेरी यादों ने मुझे भिगाया
अब तो पियाजी पास नहीं,
तो बादल में बरसात नहीं,
पहले तो खेतो के आड़ में छुपकर,
तुम मुझे सताया करते,
पहनाऊंगा आज चुडिया कहकर
बहाने से बुलाया करते
“अम्मा” जी आई ऐसा कहकर
मुझे डराया करते,
फिर घंटो बतियाते , बालो को सहलाते,
कब तक देखू कहकर सीने से लगाया करते,
उड़ते पंछियों को देखकर
उन्हें चिढाया करते , हाय अब..
कोयल बहुत कम गुनगुनाती हैं
पियाजी याद बहुत ही आती हैं
पहले मेरी मेहँदी के सूखे,
तक भी नही रुक पाते थे,
उसपे अपना नाम ढुढते
दोपहर तक मुझे बताते
छेड़ते कभी तो कभी कमर को छुके बहकाते थे

अब तो मेहंदी भी छूट गयी, स्वप्न की गगरी फूंट गयी
बस बादल में धुंधला चेहरा हैं

जो साफ़ नज़र भी नहीं आता
तू जहा गया हैं मुझको भी
क्यों साथ नहीं लेकर जाता
क्या अलग थलग हैं जहां वहां का?
वहां की याद बिछड़ी हैं
ना चरखा हैं बाबु जी का वहा ?
क्या माँ के हांथो की खिचड़ी हैं
वहा तेरे नाम से गोरी कोई
काजल बिदिया सजाती हैं
मैं ही करती हु याद तुझे
या याद तुझे भी आती हैं
मुझको दीखता हैं तू ही तू
हर पल हर क्षण हर सू
पर सुना हैं जिस गाम गया तू हैं
बस काला-सियाह अँधेरा हैं
क्या देख सकेगा वहां मुझे तू?
सुना हैं दूर बहुत हैं जगह यहाँ से
क्या माँ की लोरियाँ वहां जाती हैं?
जो हवा छूती हैं मुझे क्या,
तुझे भी छूकर जाती हैं
तू खुद नहीं गया हैं वहा,
तुझे रब ने बुलाया हैं
इस वियोग का सारा किस्सा
आज समझ में आया !
अर्चना शर्मा 

Monday, July 7, 2014

क्या प्यार दोबारा होता हैं !

जब भी देखूं तुम्हारी आँखों में
याद आते हैं वो गुजरे गुलाबी लम्हें
पहला प्यार जो हमारी ज़िंदगी में आया
उन हसीन घड़ियों में ,हमने तुम्हें पाया

बरसातों के खुशनुमा मौसम
कुछ भीगे तुम, कुछ भीगे से हम
राह से चलते-चलते अनजाने से टकराए
ठंड से कपकपाते बदन, थोड़े से सहेराए
चहेरे से टपकती बूंदें, गालों पर लटों की घटायें
नयना मिले नयनों से, हम दोनों मुस्कुराए
सिमटकर अपनी चुनरी, शरमाये निकल गये थे।

घर पहुँचे लेकर तेरे उजले से साए
पलकों में बंद होकर साथ तुम भी चले आए
मुलाक़ातों के फिर शुरू रोज़ सिलसिले
दिल-ओ-जान हमारे, सदा ही रहे मिले
रेशम डोर से बँधकर, मिलकर ख्वाब सजाए
प्यार, समर्पण के भावना से गीत रचाए
तुम्हारे होने से जीवन के नज़रिए बदल गये थे।


इतना वक़्त जो तुम संग बिता लिया
हर लम्हा जिया वो था नया-नया
गुलशन-ए-बहार में खुशियों के फूल खिलाए
संभाला तुम्हीं ने हमें ,कभी कदम डगमगाए
सिखाया तूफ़ानो का सामना करना
संयम से अपने अस्तित्व को सँवारना
प्यार की गहराई के असली मायने समझ गये थे |

गुलाबी लम्हों को रखा संजोए
मन में उनको पल पल दोहराए
क्या पहला प्यार फिर हो सकता है?
होता है, आज मुझे हुआ है
दोबारा तुमसे….
अर्चना शर्मा

मेरा प्रेम शिव हैं!

मेरा प्रेम शिव हैं ...
जिसके शीश में चन्द्रमा सुशोभित हैं , जिनकी बेसभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है | शीश पर गंगा और चंद्र-जीवन एवं कला के दयोत्म है | शरीर पर चिता की भस्म ... जतजूटधारी, सर्प लपेटे, गले मे हड्डियों एवं नरमुंडो की माला और जिसके भूत-प्रेत, पिशाच आदि गण है! मैं उन्ही की उपासक हूँ , उन्ही से मेरा प्रेम हैं मैं पार्वती नहीं पर वो मेरे शिव हैं ,मेरे शिव हैं !
प्रगाढ़ प्रेम की प्रतिमा मेरे शिव मेरे महादेव ............
उनसे ही ये जगत वो ही जगत के पालनहार .......
अर्चना शर्मा
Meriii saanso me ussiki mohabbat hain,ussi ke dum se meri jannat hain, usi me hain mere dono jahaan, ye dil ki dhadkan bhi usiki amaanat hain...

aaj hawaao me chahat hain bahot khushiya hain aas paas yaa shayad main khush hu, KHUD SE BICHHAD GYI THI , par aaj khud ba khud dhund liyaa jo mere man me hain , aainaa dekhne ki fursat bhi nahi thi aaj khud ko sanwaarna chahti hu, lekin bas mujhe pata hain jo mere man me hain bahot special hain wo....
Archana...

Friday, March 14, 2014

बरखा , कश्ती , बुँदे


बरखा , कश्ती , बुँदे
कश्ती और बूंदे झूम रही हैं बरखा संग
हम रंग जाना चाहते हैं अपने पिया के रंग
सिमटके भीगे साथ में उनके लेके अपना बचपन संग
आजाओ हम बादल छू ले उड़ जाए हवा के संग