ग़रीब कौन है ?
जो एक रुपये में खुशियां खरीदता है?
जो फाटक पे फटे कपड़े पहन
बड़ी गाड़ियों के शीशे चमकाता है?
या ग़रीब वो है जो सफेद पावडर में बंद मौत खरीद रहा है
या वो है जो 15 अगस्त के दिन एक रुपए में झंडे बेच रहा है
मजबूरी के कपड़े फटे है
या बेशर्म अमीर अलमारी में फटी जीन्स गरीब है।
आखिर ग़रीब है कौन ?
सिग्नल पे फूलो के गुच्छों को लिए वो खुशिया बेचती है
सिनेमा घरों में उतरते है हुस्न के कपङे
बिकते वो भी है उसूलों में
बारिश में भीगी मैली साड़ी लहराती वो औरत बड़ी गंदी लगती हैं
लाखो का मेक अप लगाके जो रेम्प पे फबती थी ?
तालिया बजती है इज्जतदारी की महफ़िल में भी,
तालिया तो चौराहे पे वो भी पिटते है
वो महज़ दस रुपये में अपनी दुआएं बेचते है ?
अमा यार, गरीब कौन है ?
किटी पार्टियों में पैसे हारने का शौक है जिन्हें
जो बर्तन मांजकर अपना घर संभाल लेती है
कीचड़ में लतपत है जिसका बचपन
या खिलौनों के भीड़ में जो ज़ोर ज़ोर से रोती है
ग़रीब आखिर है कौन ?
मैले कुचैले कपड़ो से गरीबी हाथ फैलाती है या
सट्टे में हज़ारों हारने वाली दोस्ती !
भूखे वो पेट गरीब है
या हरामखोर सत्ताधीश ?
लंबी लंबी वो घंमन्डी इमारते गरीब है या
वो ईमानदार झोपड़ी ग़रीब है ?
ग़रीब आखिर है कौन ?
(फेहरिश्त लंबी है, हर्फ़ कम)
पं . अर्चना शर्मा